परिवारों के लिए आस्था अभ्यास: प्रार्थना

बच्चों का कार्नर

चित्रकारी में बच्चों की सदैव विशेष रुचि देखी जा सकती है। चित्रकारी एक ऐसी कला है जिसमें चित्रकार अपनी भावनाओं और विचारों की भौतिक अभिव्यक्ति करता है। बच्चे जब चित्र बनाते हैं तो उनकी निर्मल और शुद्ध भावना उसमें देखी जा सकती है। 'श्री प्राणनाथ जी वाणी परिवार' बाल और युवा सुंदरसाथ की इस प्रतिभा के माध्यम से उन्हें ब्रह्मवाणी से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। इस सेवा में बच्चे श्री बीतक साहेब के प्रसंगों के चित्र अति उत्साह से बन रहे हैं। बच्चों के अभिभावकों के द्वारा प्राप्त प्रतिक्रिया के अनुसार, बच्चों के हृदय में सभी प्रसंगों को अंकित होने और धनी के प्रति प्रेम की अनुभूति की जा रही है। हम चित्रकारी में रुचि रखने वाले सभी बाल और युवा सुंदरसाथ का इस सेवा के लिए प्रेमपूर्वक आह्वान करते हैं।

38+

छोटे सुंदरसाथ द्वारा चित्रकारी

80+

श्री परमधाम चर्चनी बच्चों द्वारा

जल्द आ रहा है

बच्चों द्वारा बच्चों के लिए निर्देशित ध्यान

120+

2024 तक भाग लेने वाले बच्चों की कुल संख्या

बाल व युवा द्वारा

श्री बीतक साहिब

दिवस 3

कच्छ में खोज 1654 से 1658 - बंसी भंडेरी (सूरत)

दिवस 4

भोजनगर में हरिदास जी से मंत्र लेना - मिरवा कपोपरा (सूरत)





बाल व युवा द्वारा

चित्रकारी

।।गुरु को दीजे शीश, गुरु करे सब बख्शीश।।

चित्रकारी द्वारा: माही पटेल

तब ही भद्र भेष होय के, आय के बैठे पास।
पूछा नाम सुमरन काहू का लिया है, कह्या संन्यासी का कर विस्वास।।३१।।
(प्र. ३.बीतक कच्छ देश की)

उसी समय श्री देवचन्द्र जी अपने सिर के बाल मुण्डित कराकर हरिदास जी के पास बैठ गये और उनसे दीक्षा के लिये आग्रह किया। हरिदास जी ने उनसे पूछा कि क्या तुमने पहले किसी और से भी दीक्षा ली है? श्री देवचन्द्र जी ने उत्तर दिया कि हाँ ! मैंने दत्तात्रेय मत पर विश्वास करके एक संन्यासी से दीक्षा ली है। भावार्थ- यजुर्वेद में कहा गया है कि 'व्रतेन दीक्षामाप्नोति' अर्थात् व्रत से दीक्षा को प्राप्त किया जाता है। परब्रह्म के ध्यान की प्रक्रिया को निष्ठाबद्ध होकर पूरा करने का व्रत लेना ही 'दीक्षा' है, जिसे बोलचाल की भाषा में 'नाम लेना या मंत्र लेना' कहा जाता है। इसी का अपभ्रंश रूप है- नाम सुमिरन (स्मरण का मार्ग) लेना।

।।पिया जी से जोड़े नैन, तब मन पावे चैन।।

चित्रकारी द्वारा: जिया कपोपारा

एक बेर मत्तू मेहता संग, आए हते कच्छ देस।
तहां देहुरे साध बहुत, देखे बीच विदेस।।३६।।
(प्र. २.महाकारण)

व्यापार के सम्बन्ध में एक बार श्री देवचन्द्र जी को अपने पिताजी के साथ कच्छ में जाने का अवसर मिला। वहां पर उन्होंने बहुत से साधु महात्माओं तथा मन्दिरों को देखा।