एक कदम अखंड आनंद की ओर
साहित्य दर्पण
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श्री कृष्ण त्रिधा लीला
प्राणाधार सुन्दरसाथ जी, धाम धनी जी की अपार मेहर एवं प्यारे सतगुरु श्री राजन स्वामी जी के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से 'श्री कृष्ण त्रिधा लीला' पुस्तक में श्री कृष्ण जी के तन से अलग-अलग समय पर होने वाली लीलाओं का वर्णन है और किस प्रकार उनमें शक्तियों का समावेश बदला उसका विवरण किया गया है। और साथ ही साथ प्रतिबिम्ब लीला के गुह्य रहस्यों को खोलने का प्रयास किया है। आशा है कि यह ग्रन्थ सभी सुन्दरसाथ जी के लिए आत्म जागृति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए सहायक एवं रुचिकर रहेगा।
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आत्माओं की रहनी - अष्ट प्रहर
अष्ट प्रहर - आत्माओं की रहनी : प्यारे सुंदरसाथ जी 'रहनी' - जिसे श्री मुख वाणी में आत्मा की वह स्थिति कहा गया है जब आत्मा वाणी के ज्ञान को क्रियात्मक रूप देने लगे और विशुद्ध आचरण से धाम धनी का जोश और इश्क प्राप्त कर ले, जिससे उसे प्रियतम का दीदार होता है। पन्ना जी में श्री जी के साथ जो सुंदरसाथ थे वे उच्चतम रहनी की मिसाल बने। उन्होंने श्री जी को साक्षात पूर्णब्रह्म अक्षरातीत मान कर परमधाम के भाव से आठों प्रहर सेवा की। आज हम कहनी की बात करते हैं पर करनी और रहनी को थोड़े से अंश में भी आत्मसात नहीं करते हैं और सांसारिक कार्यों में अपने को फँसाए रखते हैं। 'अष्ट प्रहर - आत्माओं की रहनी' डायरी का उद्देश्य है कि, पन्ना जी की आठों प्रहर की बीतक से प्रेरणा ले कर हम खुद को धनी के प्रेम में समर्पित करने का प्रयास करें तथा उच्च रहनी के पथ पर अग्रसर हों। हर प्रहर की सेवा का संक्षिप्त वर्णन करने के बाद जो खाली पृष्ठ दिए गए हैं उसमें हम अपने उस प्रहर की बीतक लिखें और स्वयं अपनी रहनी का मूल्यांकन करें ताकि परमधाम में जागृत होने पर हम हाँसी के पात्र न बनें अपितु माया के खेल का उत्सव मना सकें।
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