सतगुरु व परमहंस
                                संक्षिप्त परिचय
                                परमहंस श्री कृष्णप्रियाजी महाराजश्री के जीवन पर उनके सद्गुरू श्री कृष्णारामजी
                                    महाराजश्री का काफी प्रभाव रहा था | श्री ५ महामंगलपुरी धाम
                                    सूरत का आचार्य पद छोड़कर
                                    उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन चिन्तन, मनन, अध्ययन और धर्मप्रचार में समर्पित कर दिया |
                                    उनकी वाणी में अद्भूत जादू था | इसलिए सम्पूर्ण भारत वर्ष से सुंदरसाथ उनकी वाणी सुनने
                                    हमेशा तत्पर रहेते थे | दूसरी तरफ उन्होंने भरोड़ा में भद्रावती पुरी धाम की स्थापना
                                    करने के बाद भारत के विभिन्न स्थानों पर जाकर प्रणामी धर्म का प्रचार – प्रसार किया था
                                    |
                                    यहां उनके द्वारा अनेक स्थानों पर किए गए प्रणामी धर्म के प्रचार की महिमा प्रस्तुत की
                                    गई है | 
                                खंभात में धर्म प्रचार : ई. सन् १९७६ 
                                    धर्मक्षेत्र में भी खंभात विख्यात था । जिस तरह से पन्ना हीरे की खदानों के लिए
                                    प्रसिद्ध है उसी तरह खंभात को ब्रह्मसृष्टिओं के क्षेत्र से जाना जाता है । प्रणामी
                                    धर्म में खंभात सोमजीभाई के नाम से प्रसिद्ध है । महामति श्री प्राणनाथजी ने वि सं १७३१
                                    में सूरत से ५०० सुंदरसाथ सहित पैदल प्रणामी धर्म का जागनी अभियान शुरू किया था । इसमें
                                    खंभात के सुंदरसाथ सोमजीभाई शामिल हुए थे । आज खंभात का प्रणामी मंदिर सोमजीभाई का घर
                                    है । जहाँ महामतिजी ने श्री ५ पदमावतीपुरी धाम से श्री भट्टाचार्यजी महाराज के साथ भेजी
                                    हुई अपने वाघा-वस्त्रों की सेवा पधराई हुई है ।
                                
                            
                            
                                परमहंस महाराजश्री भी खंभात के मंदिर में दर्शानार्थ आते थे । इसी समय परमहंस
                                    महाराजश्री को खंभात के सुंदरसाथजी ने आमन्त्रित किया । 
                                
                                    
                                    श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराजश्री
                                 
                                खंभात के धर्मप्रेमी सुंदरसाथ श्री रमणभाई साड़ीवालों ने ई सन्
                                        १९७६ में खंभात मंदिर में
                                    १०८ साप्ताहिक पारायण का आयोजन किया । 
                                परमहंस महाराजश्री सभा मंडप में विशिष्ट तरीके से सिनगारित व्यासपीठ पर विराजमान हुए ।
                                    उनमें ऐसी दिव्य शक्ति थी की, उनके आसपास का समग्र वातावरण एक अलौकिक ऊर्जा से विद्यमान
                                    हो गया । तमाम सुंदरसाथ महाराजश्री की दिव्य प्रतिभा से आकर्षित हो उठे । कार्यक्रम के
                                    प्रथम दिन ही प्रार्थना के बाद महाराजश्री ने प्रारम्भिक प्रवचन में उपस्थित सर्व
                                    सुंदरसाथ को कहा कि,  यह खंभात नगरी में साक्षात अक्षरातीत
                                        स्वरूप श्री प्राणनाथजी के
                                        वाघा-वस्त्रों की सेवा में विराजित हैं । यह धरती धन्य है । मैं सुंदरसाथ और भक्त
                                        जनों
                                        के चरणों में विनम्र प्रार्थना करता हूं कि, जो सुंदरसाथ सम्पूर्ण नियमबद् होकर सात
                                        दिन तक कृष्णकथा का श्रवण करेंगे उनको सात दिन में निश्चित अक्षरातीत का सत्य दर्शन
                                        होगा । 
                                
                                    
                                    श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराजश्री
                                 
                                 परमहंस महाराजश्री के यह वचन सुनकर समग्र सभा के लोग आश्चर्य चकित हो गए । मंच पर
                                    विराजमान संत – मनीषी भी विचार में पड़ गए । सबको ऐसा लगा कि आकाश वाणी हुई है । 
                                सिद्धपुर में भंडारा : ई. सन् १९७७  
                                    सिद्धपुर एक प्राचीन ऐतिहासिक तीर्थ स्थान है । प्रणामी धर्म के इतिहास में भी सिद्धपुर
                                    का महत्व विशेष है । महामति श्री प्राणनाथजी ने  वि. सं १७३१
                                        में ५०० सुंदरसाथ  सहित सूरत
                                    से जागनी महा अभियान का प्रारम्भ किया था तब श्री जी अहमदाबाद होकर सिद्धपुर आये थे ।
                                    सिद्धपुर में २२ दिन तक बिंदु सरोवर समीप ठहर कर सत्संग चर्चा की थी । श्री प्राणनाथजी
                                    के श्रीमुख से प्रवाहित तारतम वाणी “ कुलजम स्वरूप साहेब ” के मारफत सागर ग्रंथ के १८
                                    प्रकरणों को संकलित करके ग्रन्थ के रूप में करने वाले परम तेजस्वी सिद्ध संत केशवदास जी
                                    महाराज जैसा अलौकिक शिष्य श्रीजी ने सिद्धपुर में से ही पाया था । श्री केशवदासजी
                                    महाराज ने ही तारतम वाणी के १४ रत्न समान विविध ग्रंथों को ध्यानमें रखकर महामतिजी के
                                    निर्देश अनुसार संकलित किया था । परमहंस श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराज ने तो वर्षों
                                    तक
                                    इस नगरी में ही शिक्षा प्राप्त की थी । सिद्धपुर में से प्राचीन ग्रन्थों को एकत्र करने
                                    का कार्य करके महाराजश्री पुनः भरोडा भद्रावतीपुरी धाम में आये ।
                                
                                मालपुर ग्राम में धर्म प्रचार : - प्रणामी समाज में से ऊंच-नीच के भेद दूर करके सबको
                                    तारतम प्रदान किया । बाकोर समीप कलेश्वरी हिडम्बा वन में भीम की चोरी के पास विशाल जगह
                                    में ४५ स्वरूप साहेब साप्ताहिक पारायण किया ।  दिनांक
                                        ०६/११/१९६८ के दिन महाराजश्री
                                    मालपुर पधारे । यहां तीन दिन तक वाणी चर्चा की । तत्पश्चात महाराजश्री लुणावाडा पधारे ।
                                    इसके बाद भद्रावती पुरी धाम भरोडा, मोडासा, मेढासण, सरडोई वगैरह स्थानों पर पधारे ।
                                
                                
                                    
                                    श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराजश्री
                                 
                                श्री ५ पदमावती पुरी धाम में भंडारा:
                                    महाराजश्रीने निजानन्द सम्प्रदाय का इतिहास, दर्शन, स्वरूप साहेब वगैरह की तालीम लेने
                                    के लिये विद्यार्थी जीवन पन्नाजी में बिताया था । उनके मन मे इच्छा हुई कि, छात्र जीवन
                                    दरम्यान पन्ना में रहकर धामी भाईयों के घर मधुकरी की थी । इसलिये मुझे भी धामी भाईयों
                                    के लिये भंडारा करना चाहिए ।  ई. सन्. १९७७ में राधा
                                    अष्टमी के दिन भंडारा तय किया गया
                                    । अपने गुरू श्री कृष्णारामजी महाराजकी याद में विशाल भंडारा किया गया । १०८ प्रकारके
                                    व्यंजन बनाये गये ।
                                
                                 दिनांक २८/०९/१९७८ से ३०/०९/१९७८ तक  श्री ५ नवतनपुरी
                                    धाम, जामनगर में आचार्य श्री १०८
                                    धर्मदासजी महाराज द्वारा आयोजित विजयाभिनन्द बुद्ध त्रिशताब्दी महोत्सव में परमहंस
                                    महाराजश्री का व्याख्यान चीरस्मरणीय रह्या । उनकी पवित्रता और तपके प्रभाव से कई
                                    चमत्कारी घटनाएँ बनी और बनती रहती थी और बनती भी रहेगी । 
                                
                                    
                                    श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराजश्री
                                 
                                जन कल्याणमयी भावना से ओत-प्रोत महाराजश्री ने भद्रावती पुरी धाम में द्वितीय कलश अनावरण
                                    समारोह का आयोजन किया । यह  कार्यक्रम २ मार्च १९८० से ७ मार्च
                                        १९८० तक  तय किया गया ।
                                     इसमें १०८ पंचदिवसीय पारायण, ३१३ राज भोग  और कलश
                                    अनावरण जैसे मुख्य तीन कार्यक्रम
                                    आयोजित किये गये । इसमें श्री भद्रावती पुरी धाम श्री राज मंदिर के प्रार्थना हाल में
                                    पारायण पाठ कराया गया ।
                                
                                श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराजश्री का जीवन धूपसली जैसा था । भद्रावती पुरी के आसपास
                                    महिसागर के कोतरो में बसते लोगो के लिये महाराजश्री दुःख निवारण केंद्र समान बन गये थे
                                    । श्री ५ पदमावती पुरी धाम की यात्रा, श्री भद्रावती पुरी धाम में सुवर्ण कलश महोत्सव,
                                    खंभात में धर्म प्रचार, सिद्धपुर में भंडारा, मालपुर ग्राम में धर्म प्रचार, श्री ५
                                    पदमावती पुरी धाम में भंडारा, पारायण पाठ के लिये नियम घड़तर, अमलीकरण के लिये शिस्त,
                                    ३१३
                                    का अर्थघटन, वगैरह द्वारा परमहंस महाराश्रीने प्रणामी धर्म में विशेष योगदान दिया है ।
                                
                                
                                    
                                    श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराजश्री
                                 
                                 ई.सन् १९८२ में  श्री ५ नवतनपुरी धाम, जामनगर में आयोजित
                                    श्री निजानंद चतुर्थ शताब्दी
                                    महोत्सवमें महाराजश्रीने माहेश्वर तंत्र की चर्चा सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था ।
                                
                                 ई.सन् १९८३- वि.सं २०३९ की आषाढ़ सुद द्विज के दिन भरोड़ा
                                    में महाराजश्री के ज्ञान से
                                    प्रभावित होकर उनको हाथी पर बैठाकर हरेकृष्ण संप्रदाय द्वारा शहरमें उनका स्वागत किया
                                    गया । 
                                गुरूजी श्री १०८ मंगलदासजी महाराज, परमहंस महाराजश्री के परममित्र थे । ई.सन् १९८२ में
                                    गुरूजी ने सिलीगुड़ी में १०८ पारायण आयोजित किये थे तब परमहंस महाराजश्री
                                    कृष्ण प्रियाचार्यजी भद्रावतीपुरी धाम से सिलीगुड़ी पधारे थे । दोनों के बीच मित्रता और
                                    आदर भाव था । ई.सन् १९८५ में दिनांक १, श्री मंगलदासजी
                                    ने अपना तपोमयी देह का त्याग किया
                                    । यह सुनकर महाराजश्री अपने ध्यान कक्ष में एकांतमें घंटो तक मौन अवस्था में स्थित रह
                                    गये
                                    । 
                                
                                    
                                    श्री कृष्ण प्रियाचार्यजी महाराजश्री
                                 
                                परमहंस महाराजश्री द्वारा स्थापित श्री भद्रावती पुरी धाम में अनेक बार लौकिक चमत्कार
                                    होते रहते है ।  दिनांक २०/०४/१९८५ के दिन चैत्र  वदी
                                    अमासके दिन उत्सव हो रहा था । उस
                                    समय मंदिर के शिखर में बिराजमान कलश महाराज की वेदी पर से दूध जैसा श्वेत, अमृत जैसा
                                    मीठा जल प्रगट हुआ । यह श्री राजजी की कृपा से परमधाम की यमुनाजीका प्रगटन हुआ था ।
                                    दूसरी बार भी यहां रंगपंचमी के दिन  दिनांक २०/०३/१९८७ के
                                    दिन कलश महाराज की वेदी पर से
                                    अमृतमयी जल निकला था और उनका पान सबने किया था । 
                                परमहंस महाराजश्री कृष्ण प्रियाचार्यजी के अन्दर परमधाम की अमलावती जी की आतम थी । प.पू
                                    महाराजश्री शिष्यों के भावको अन्तर्यामी बनकर जान लेते थे । उन्होंने अनेक चमत्कार किये
                                    थे । जिनका लाभ सेवाभावी सुंदरसाथ को मिलता रहा है । अपने देह त्याग के बारे में ३७
                                    वर्ष पहेले मूलमिलावा का चित्रांकन करके दर्शाया था कि, वसंत पंचमी के गुरूवार के दिन
                                    उनकी आतम जाग्रत होंगी और  दिनांक २८/०१/१९९३ के दिन
                                    उपस्थित सब सुंदरसाथ को प्रणाम करके
                                    अपना देह त्याग दिया था । धामगमन के पांच दिन बाद भी देह दर्शन के लिये रखें देह में
                                    से कोई विकार या दुर्गंध पायी गई नही थी । समाधि के समय गले तक देह मिट्टी में जाने के
                                    बाद अपने नेत्र खोलकर सबको दर्शन दिये थे । 
                                ऐसे प्रगट  ब्रह्म स्वरूप सदगुरू परमहंस महाराजश्री कृष्ण
                                        प्रियाचार्यजी  साक्षात राजजी
                                    स्वरूप थे । श्री श्री अमलावतीजी के परमधाम के मूल स्वरूप की आतम लेकर अवतरित दिव्य
                                    सच्चिदानंद घन स्वरूप थे । उनकी कृपा आज भी बरस रही है. उनकी दिव्य चेतना आज भी
                                    आशिर्वाद दे रही है । 
                            
                            
                                
                                    
                                     सप्रेम प्रणाम जी !
                                    सतगुरु व परमहंस संक्षिप्त परिचय पढ़ने के लिए और समय निकालने के लिए धन्यवाद। 
                                        हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप हमें अपनी ईमानदार प्रतिक्रिया दें।