सतगुरु ब्रह्मानंद है

सतगुरु व परमहंस

“सतगुरु ब्रह्मानंद है” परब्रह्म परमात्मा के आनंद अंग श्यामा जी धनी श्री देवचंद्र जी के स्वरुप में हमारे सतगुरु हैं I सतगुरु और पूर्णब्रह्म में बहुत सूक्ष्म सा भेद है I यह भेद इतना सूक्ष्म है कि कहा जा सकता है कि दोनों में कोई भेद ही नहीं है l इस संसार की लीला में सतगुरु परब्रह्म नहीं होते किन्तु उनकी आत्मा परब्रह्म की दुल्हन होती है I उनके अन्दर प्रियतम का जोश आवेश और हुक्म विराजमान होता है I इसलिए सतगुरु तो परब्रह्म से मिलने का एक मात्र साधन और परब्रह्म का प्रतिबिंब ही है I घड़े के जल के उस प्रतिबिंब की तरह सूर्य के प्रतिबिंब को देखकर सूर्य की पहचान हो जाती है वैसे ही सतगुरु के स्वरूप में देखकर परब्रह्म की पहचान हो जाती है क्योंकि उनके हृदय में समस्त ब्रह्म आत्माओं के साथ परब्रह्म विराजमान होते हैं l

हमारे प्रेरणास्रोत सतगुरु व परमहंस

श्री बाबा दयाराम साहब जी

सतगुरु व परमहंस

संक्षिप्त परिचय

श्री बाबा दयाराम जी का प्रादुर्भाव ज्येष्ठ सुदी प्रथम विक्रम संवत 1785 सन 1728 के दिन जिला मिंट गुमरी (आज का पाकिस्तान) के गाँव कबीर वाला में हुआ था l आपके पिता श्री कन्हैया लाल प्रतिष्ठित ब्राह्मण थे I आपकी माता श्री मति राधाबाई धर्म निष्ठ थी I आपके दो ज्येष्ठ भ्राता गोवर्धन दास और छबील दास थे l आपके माता पिता धार्मिक विचारों से ओतप्रोत थे l आपके जन्म उपरान्त विप्रों ने नवजात शिशु में महापुरूष के लक्षण देखकर आपका नाम दयाराम निश्चित किया l जन्म से ही आपकी वृत्ति धार्मिक थी I संसार की वस्तुओं का आपको कोई आकर्षण नही था l 10 वर्ष की अल्पायु में ही आपका सांसारिक वैभव से वैराग्य भाव था l आपके अंदर असंख्य गुणों को देखकर संत जन और परिवार जन आपको छोटी सी आयु में ही बाबा कहने लगे I वर्ष 15 की आयु तक आपने वेद वेदांत श्री मद भागवत, रामायण, श्रीमद्भागवत गीता सहित अनेकों धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर लिया थाI

श्री बाबा दया राम धाम, करनाल

आपका विश्वास था कि परमात्मा को पाने के लिए सतगुरु को पाना होगा l सतगुरु ऐसा हो जो पूर्ण ब्रह्म की पहचान कराए l आप सतगुरु की खोज में निकल पड़े I ऋषिकेश में आपने 3 वर्ष तक घोर तपस्या की लेकिन प्रभु दर्शन नहीं हुए l आप पुनः गुरु खोज के लिए पैदल निकल पड़े I आप मथुरा काशी, रामेश्वरम, गया, प्रयाग आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए द्वारिकापुरी पहुंचे l आपकी तपस्या और प्रेम लक्षणा भक्ति से प्रसन्न होकर वृंदावन बांके बिहारी श्री कृष्ण जी ने आपको दर्शन दिये और निर्देश दिया कि आप मलकाहांस में परम हंस दरबारा सिंह जी की शरण में जाओ l वहां तुम्हें ब्रह्मज्ञान प्राप्त होगा l

श्री बाबा दयाराम जी

सन 1763 में परमहंस भाई दरबारा सिंह ने उनकी जिज्ञासा को देखकर उन्हें श्री तारतम मंत्र दिया और आध्यात्मिक दीक्षा प्रदान की l आपके श्री मुख से श्री तारतम वाणी चर्चा एवं श्री परमधाम की महिमा व नूरमय रंग महल का चित्रण सुनकर सभी नर नारी आनंद लेने लगे I आपके मुख से ब्रह्मज्ञान के प्रकाश की किरणें दूर दूर तक फैलने लगी l मलकाहांस में इतने अधिक श्रद्धालु जन आने लगे कि वह स्थान एक बड़ा तीर्थ बन गया I सन 1764 में सतगुरु भाई दरबारा सिंह जी ब्रह्मलीन हो गए तदुपरांत आपको उस स्थान का दायित्व सम्भालने के लिए आग्रह किया गया किन्तु आपने अपनी असमर्थता व्यक्त की l आपकी सलाह से तपस्वी संत भाई जीवन दास जी को मलकाहांस स्थान का दायित्व सौंपा और गादी पर बैठाया गया I

श्री बाबा दयाराम जी

बाबा दयाराम साहेब सन 1765 में पुनः प्रभु प्राप्ति यात्रा पर निकल पड़े I लम्बी कठिन पैदल यात्रा करके आप श्री 5 पद्मावती पुरी धाम पहुंचे l वहां आप चोपड़ा मंदिर पहुंचे और उस स्थान की महिमा जानकर एकांत में तपस्या में लीन हुए l सच्चिदानंद अक्षरातीत ने दर्शन दिये और स्मरण कराया कि तुम परमधाम की केसर बाई सखी हो तुम्हें इस जगत में भूली भटकी ब्रह्म आत्माओं को जागृत करना है l आप 10 वर्ष तक श्री पद्मावती पुरी धाम में रहे और महामति प्राणनाथ जी की बीतक व श्री तारतम सागर का गहन अध्ययन किया और श्री 5 नौतन पुरी धाम, जाम नगर की ओर अग्रसर हुए l बाबा दयाराम जी महाराज वीजावर, चित्रकूट, कालपी, रामनगर, आकोट, औरंगाबाद, उज्जैन, अनूप शहर, दिल्ली, हरिद्वार, मथुरा, मेढता, अहमदाबाद होते हुए महामंगलपुरी धाम सूरत पहुंचे l वहां से तीर्थ स्थानों के दर्शन करते हुए आप सन 1803 में श्री 5 नवतन पुरी धाम पहुंचे l आपने सभी मन्दिरों के दर्शन किए और खीजड़ा मंदिर में तपस्या में लग गये l वहां आपको पुनः अक्षरातीत श्री कृष्ण जी के दर्शन हुए l आपको ऐसा संकेत मिला और मलकाहांस की ओर चल पड़े l

श्री बाबा दया राम धाम स्थापना - ई - सन- 1744

मलकाहांस के पावन स्थान के जीवनदास परमधाम सिधार चुके थे I दूसरी ओर आप भाई जीवन दास जी को न पाकर उदास और गम्भीर हुए l महाराज प्रेम दास जी ने आपको सांत्वना दी I सन 1805 में महाराज प्रेमदास जी ने अपनी लौकिक लीलाओं को विश्राम दिया और परमधाम सिधारे l सबने बाबा दयाराम साहब जी के समक्ष स्थान का सेवा भार सम्भालने के लिए नम्रता पूर्वक निवेदन किया l आपने पुनः असमर्थता प्रकट की l परमधाम की सखी केसरबाई अपने स्वामी की मुखवाणी के आगे नतमस्तक हुई अर्थात श्री दयाराम साहब ने गादी का भार संभालना स्वीकार किया l

श्री बाबा दया राम धाम स्थापना - ई - सन- 1947

मिंटगुमरी, लायलपुर जिलों व गांव गाँव में सूचना मिलते ही असंख्य सुन्दर साथ बाबा दयाराम साहेब के दर्शनार्थ मलकाहांस पहुँचने लगे I श्री मुख वाणी ज्ञाता बाबा दयाराम साहेब का गादी पति अभिषेक किया गया I विशाल भंडारा हुआ I मलकाहांस के श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर की महिमा इतनी अधिक बढ़ने लगी कि सभी धर्मों के लोग वहां पैदल आने लगे I रास्ते में जहाँ कहीँ उन्हें कष्ट का अनुभव होता वे आपके नाम का जय घोष करते और उनके कष्ट दूर हो जाते l आपने महामति जी के सुख शीतल करूं संसार के संदेश को साकार रूप देने में अथक प्रयास किए l

सभी श्रेणी के लोग अपनी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आपकी शरण में आते थे I बाबा दयाराम साहेब उस युग के मसीहा थे I 100 वर्ष की आयु पूरी करने के उपरांत माघ वदी शुक्रवार सन 1828 के दिन आपने अपनी इह लीला का संवरण किया और ब्रह्ममुहूर्त में जीवित समाधि ली l आपके बिछोह से पूरे प्रणामी जगत में दुःख की लहर व्याप्त हो गई l अश्रुधारा बहने लगी l बाबा दयाराम साहेब के परम शिष्य श्री गुलाब दास जी और विद्वान संतो ने पीड़ित सुन्दर साथ को सांत्वना देते हुए समझाया कि बाबा जी हमारी आँखों से ओझल हुए हैं लेकिन हमारे हृदय में विराजमान हैं l बाबा दया राम साहेब की पावन समाधि पर सुन्दर साथ द्वारा अर्चना करने पर उनकी इच्छा और मनोकामनाएं पूर्ण होने लगी और आज भी हो रही हैं l उनके ब्रह्मलीन होने के उपरांत उनके परम शिष्य श्री गुलाब दास जी को उनके स्थान पर गादीपति बनाया गया I

श्री बाबा दया राम धाम, करनाल

सप्रेम प्रणाम जी !

सतगुरु व परमहंस संक्षिप्त परिचय पढ़ने के लिए और समय निकालने के लिए धन्यवाद।
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