सतगुरु व परमहंस
                                संक्षिप्त परिचय
                                आपका जन्म  5 फरवरी 1925 को श्री काशीराम आहूजा एवं माता
                                    श्रीमती माया बाई जी के घर हुआ ।
                                    आप जन्म से ही प्रणामी थे । पश्चिमी पाकिस्तान के मिन्टगुमरी गाँव में रहते थे । गाँव
                                    के पास एक हड़प्पा शहर था जहां अधिकतर धर्म प्रचारक महाराज आते थे । आपके पिता ने घर
                                    में ही सुन्दर साथ के लिए मन्दिर की व्यवस्था कर दी थी । आपके पिता बड़े भाव से महाराज
                                    जी की सेवा करते थे । 
                                आप बचपन से ही चंचल, दृढ़ निश्चय, तथा तर्कशील बुद्धि वाले थे । आप केवल मेहरदास जी
                                    महाराज जी से प्रभावित थे । 12, 13 वर्ष की आयु में आप
                                    बड़ी बहन के पास अग्रिम शिक्षा
                                    के लिए शहर गए । आप वहां पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए । आपका जीवन
                                    अनुशासनमयी बन गया । आपने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली । आपने 20 साल की आयु में एक
                                    सामाजिक कटुता का अनुभव किया । कई कुप्रभाव के कारण आप प्रणामी धर्म व समाज से दूर होने
                                    लगे । तब नवतनपुरी धाम के आचार्य श्री धनीदास जी वहां पहुंचे । वह निस्वार्थ फक्कड़
                                    फकीर आचार्य श्री परमहंस पद को प्राप्त होने वाले थे । उन्होंने फूट डालने वालों को सही
                                    राह दिखाई । आपको आचार्य श्री के प्रति अत्यधिक श्रद्धाभाव पैदा हो गया । 
                            
                            
                                युवावस्था में संघ की शाखा में सन् 1994 में आपने घुड़सवारी , तैराकी , दंड और
                                    तलवार चलाने का भी प्रशिक्षण प्राप्त किया । सन् 1946 में सर्वोच्च शिक्षा इन्टरमीडिएट
                                    की परीक्षा अच्छे अंकों से प्राप्त कर ली । आप जीवन की मनोभावनाओं में निस्वार्थ सेवा,
                                    निर्बलों को गले लगाना , निःसंकोच कटु सत्यवादिता , दृढ़ निश्चयी आदि कठिन से कठिन
                                    सोपानों पर अग्रसर होते गए । एक बार घुड़सवारी के दौरान आपकी टांग में लोहे की रकाब की
                                    रगड़ का जख्म हो गया । दहशत थी कि टांग न चली जाए । एक वैद्य फरिश्ते के रूप में आये और
                                    उनकी टांग को बचा लिया । वैद्य ने राम लीला में अभिनय करने का वचन आपसे ले लिया । आपने
                                    अभिनय का एक अच्छा परिचय दिया । 
                                
                                    
                                    श्री "सरकार श्री" जगदीश चन्द्र जी
                                 
                                 भारत पाकिस्तान का बटवारा होने से पूर्व महाराज श्री रामरतन दास जी शेरपुर आश्रम बसा
                                    चुके थे । उन्होंने भविष्यवाणी कर दी थी कि आप सुन्दर साथ शीघ्र ही अपने कारोबार समेट
                                    कर शेरपुर आश्रम में आ जाओ । हिन्दुस्तान का वह भाग विभाजन के बाद पाकिस्तान में आ गया
                                    । 5 दिन में 200 कि॰मी॰ की पद यात्रा भूखे प्यासे रह कर भारत में आ गए । वहां से आप
                                    सबसे पहले काशीपुर , मेरठ , इलाहाबाद , मुरादाबाद और अन्त में गुड़गांव में स्थायी हुए
                                    । 25 दिसम्बर 1948 को लगभग 23 वर्ष की आयु में आपका
                                    विवाह कु0 कृष्णा सुपुत्री श्री
                                    आत्मारामजी के साथ हुआ । आपकी नौकरी डाक तार विभाग में तथा श्रीमती कृष्णा जी की नौकरी
                                    एक विद्यालय में लगी । अप्रैल 1949 में आर एम एस की नौकरी रिफ्यूजी कमेटी में सचिव पद
                                    मिला । आपके मन में हनुमान दर्शन की लालसा प्रबल हो उठी । 25
                                        वर्ष की आयु में 25
                                        दिसम्बर 1950 में आपके निर्मल भाव की लगन से आपको हनुमान जी का दर्शन हो गया
                                    । 
                                
                                    
                                    श्री "सरकार श्री" जगदीश चन्द्र जी
                                 
                                 इलाहाबाद में 1951 की कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां चल
                                    रही थीं । आप और अध्यक्ष श्री
                                    हंसराज जी सेवा में व्यस्त थे । हंसराज जी बोले वाह रे मेरे भगवान विष्णु तेरी अजब लीला
                                    है । राज जी ने आपके मुख से जवाब में कहलवा दिया — किस विष्णु की महिमा गाते रहते हो ?
                                    जहां हमारा परमधाम है वहां तो विष्णु भगवान जा नहीं सकते । इस जवाब से हंसराज जी की
                                    भावना को ठेस पहुंची । उन्होंने कहा कि आपको इसका खुलासा करना पड़ेगा । जो खुलासा नहीं
                                    किया तो क्वाटर्स और सभा के पद से निकाल दिया जायेगा । आपने अपनी पत्नी श्रीमती कृष्णा
                                    से सारी बातें कहीं तो उन्होंने कहा कि आपके प्रश्नों का उत्तर श्री पन्ना जी जाकर मिल
                                    जायेगा । श्री पन्ना जी का नजारा देखकर आपको आत्मिक आनन्द का अनुभव होने लगा । श्री
                                    महारानी जी के मन्दिर में जब दन्डवत प्रणाम किया तो केवल अश्रु धारा ही बहती रही ।
                                
                                    
                                    श्री "सरकार श्री" जगदीश चन्द्र जी
                                 
                                दूसरे दिन आपको पुराने परिचित राजेन्द्र लाल जी व नागपाल जी मिले । उन्होंने बड़े हेत से
                                    पं० कृष्णदत्त शास्त्री जी से मिलवाया । उन्होंने श्री बीतक
                                        साहेब से 14 लोक ,5 तत्व ,
                                        3 गुण और 4 प्रकार की प्रलय के भेद समझाकर त्रिदेवा की महाप्रलय में समाप्त होने की
                                        स्थिति बता दी , साथ ही श्री निजानंद चरित्रामृत पढ़कर सारे संशय मिटाने को कहा ।
                                    यहीं
                                    से आपको श्री निजानंद सम्प्रदाय में रुचि पैदा होने लगी । आपको श्री मद्भागवत से सब कुछ
                                    समझाया । महाप्रलय होगी तो वैकुंठ वासी विष्णु कहां होंगे ? साथ ही बाकी सब
                                    देवी-देवताओं की जिनकी आप पूजा करते हैं उनकी क्या स्थिति होगी ? 
                                
                                    
                                    सतगुरू व पारब्रह्म की खोज :
                                 
                                पारब्रह्म को खोजने की लगन लगी कि उनका धाम , स्वरूप व लीला क्या है ? यह बताने वाला कौन
                                    ? अपने प्रियतम को कैसे पाऊं ? दिल्ली के मेहेरचन्द जी गिरधर ने बताया कि करनाल में
                                    बाबा दयाराम साहिब का मेला भंडारा है । 27 वर्ष की आयु में
                                        करनाल यात्राकी फिर मेहेरचन्द जी ने बताया कि मई में शेरपुर में मेला है,
                                    वहां के महाराज
                                    श्री की बड़ी महिमा सुनी है । धनी ने श्री मेहेरचन्द जी को माध्यम बनाकर आपकी तड़पती
                                    रूह को शेरपुर अपने चरणों में बुलाने का कारण बना ही दिया । 
                                
                                    
                                    सतगुरू मिलन : 
                                 
                                सतगुरू मिलन :
                                आप अपनी श्रीमती जी, श्री मेहेरचन्द जी गिरधर, श्री चिमनलाल सिडाना जी, एक वर्ष की बच्ची
                                    बीना को तथा रास्ते का सामान लेकर बड़ी उमंग के साथ दिल्ली से ननौता स्टेशन पर प्रातः
                                    6:30 बजे उतरे । सब सुन्दर साथ वहां से पैदल रवाना हो गए । पूछने पर पता चला कि शेरपुर
                                    14 किलोमीटर है । एक मोटा कपड़ा सिर पर रखकर उस पर बक्सा उसके ऊपर बिस्तर तथा हाथ में
                                    कनस्तर पकड़ कर यात्रा की । तेज धूप , ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं , न कोई बैल गाड़ी ,
                                    नंगे पांव चलते गर्म धरती के कारण पांव में छाले पड़ गए थे । नंगे पांव होने से खेत में
                                    लगे गेहूं के डंठलों के कांटे चुभने लगे और खून भी बहने लगा । कपड़े पसीने से लथपथ ऐसी
                                    हालत में शेरपुर आश्रम के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो सामने एक आम के वृक्ष के नीचे सफेद
                                    कपड़ों में श्री महाराज जी ने फुलू भाई के द्वारा सामान उतरवाया और श्री महाराज जी ने
                                    स्वयं आकर उसी हालत में आप को बड़े प्यार से गले लगा लिया । पुजारी जुगलदास जी ने पानी
                                    पिलाया । श्रीमती जी ने कहा पहले महाराज जी को प्रणाम करके आएं । आपने पुजारी जी से
                                    पूछा कि महाराज जी का कमरा और आसन कहां है ? पुजारी जी ने कहा महाराज जी तो ये ही हैं
                                    जो आपको गले मिलकर अभी-अभी अन्दर गए हैं । 
                                 महाराज जी की रहनी का प्रभाव आप पर अधिक पड़ा । उनकी मोहिनी सूरत ने मेहेर भरी नजर से
                                    सब कुछ दे दिया ,ऐसा आप महसूस करने लगे । अब निश्चय कर लिया कि अब कहीं जाने की
                                    आवश्यकता नहीं है । दूसरे दिन आपको और आपकी श्रीमती तथा चिमनलाल सिडाना व उनकी पत्नी
                                    चारों को समझाया कि तारतम देने वाला भी कोई गुरु नहीं और तुम चेले नहीं , हम सब एक ही
                                    धाम धनी की निसबत हैं । हम सब एक ही परमधाम की साथी अंगनाएं हैं , यह समझाकर चारों को
                                    तारतम दे दिया । आप बड़े खुश थे लेकिन मन में एक ही द्वन्द चल
                                        रहा था कि हनुमान जी का
                                        क्या होगा ? उनकी घर में पड़ी फोटो का क्या होगा ? महाराज जी ने कहा कि
                                    घबराने की कोई
                                    बात नहीं है । घर जाकर सवा सेर मिठाई के साथ हनुमान जी का फोटो किसी भी हनुमान मंदिर
                                    में अर्पित कर आना । फिर अंगना भाव से धनी जी से अटूट सम्बन्ध
                                        बनाए रखो तो धनी जी धनवट
                                    करते रहेंगे ।
                                 भण्डारे के बाद आप प्रणाम करने गए तो महाराज जी बोले इलाहाबाद तो बहुत दूर है , चलो
                                    श्री राज जी ठीक करेंगे । आपके हृदय में अंकुर फूट चुका था । मेहर से जाग्रत बुद्धि भी
                                    प्रवेश कर गई थी । कुछ समय बाद आपका तबादला शेरपुर के नजदीक मुरादाबाद हो गया । कुछ समय
                                    बाद दिल्ली में ही नौकरी का अवसर मिल गया और आप गुड़गांव में आकर रहने लगे । 1953 का
                                        भण्डारा निकट आ गया । भण्डारे पर फिर वही 14
                                        किलोमीटर पैदल चलने का कष्ट सहन किया तब
                                    आश्रम पहुंचे । आप दोनों सेवा का प्रस्ताव लेकर महाराज जी के चरणों में पहुंच गए ।
                                    महाराज जी ने आपको परखा और कहा कि भाई सेवा करने में और कहने में दिन और रात का अन्तर
                                    है । सरकार जी ने कहा महाराज जी सेवा करने वाले हम कौन हैं ? हम तो नीच पापी दुष्ट जीव
                                    वाले हैं ,आप मेहर कर के बल देकर सेवा बख्शें यही चाहना है । आपकी सेवा भावना को सुनकर
                                    महाराज जी का दिल भर आया और कहा कि सतगुरू महाराज तुम्हें बल बुद्धि देवें , जाओ जी भर
                                    कर सुन्दर साथ की सेवा करो । उनकी मेहर आपके ऊपर अत्यधिक हुई और बल मिला । 
                                
                                    
                                    श्री "सरकार श्री" जगदीश चन्द्र जी
                                 
                                आपके जीवन की उपलब्धियाँ निम्न हैं:
                                     सन् 1953 के  बाद महाराज जी कहीं भी जाते तो आपको साथ
                                    लेकर जाते थे । सन् 1955 में
                                    दिल्ली पुलबंगश में मन्दिर का निर्माण । सन् 1956 में पन्ना जी धाम में भन्डारा शुरू
                                    करवाना । सन् 1957 में पुलबंगश मन्दिर में प्रथम बार
                                    पूरे प्रणामी समाज में श्री 108
                                    अखण्ड परायण महायज्ञ का सम्पन्न होना । पूरे आलम में महाराज रामरतन जी के साथ जगदीश व
                                    मेहरचन्द के चर्चे होने लगे । सन् 1958 में जगह-जगह जाकर
                                    श्री प्राणनाथ जी का संदेश
                                    दिया । नवतनपुरी धाम में महाराज श्री धर्म दास जी का गादी अभिषेक का सारा कार्य भार
                                    उठाया ।  सन् 1960 में  प्रणामी रीति से प्रथम विवाह
                                    महाराज जी के पुत्र सोमदत्त की
                                    ज्येष्ठ पुत्री का महाराज जी की आज्ञा और धाम धनी जी की मेहर से सम्पन्न हुआ ।  सन् 1962
                                        में  कश्मीर यात्रा का अवसर आपको प्राप्त हुआ । एकान्त पाकर महाराज जी बोले
                                     “क्या मुझे
                                        पहचानते हो ?” आपने उत्तर दिया कि आप मेरे सतगुरु महाराज हैं , फिर महाराज
                                    जी ने स्वयं
                                    अपना सारा वृतान्त कहकर अपने  अन्दर विराजमान श्री राज जी की
                                        शक्ति का अनुभव कराया और
                                        कहा कि यह मेरा बल नहीं खुद प्राणनाथ जी ही अपना जागनी कार्य करा रहे हैं ।
                                
                                महाराज जी ने विजया बूटी मंगवाकर पत्तियों को हाथ से रगड़ कर उसका जो रस निकला वह
                                    मेहरचन्द जी को पिलाया और आपको गोला गर्म पानी के साथ खाने को कहा । महाराज जी ने कहा
                                    कि इससे आनन्द मिलेगा खा कर देखो । आपने उसी समय खा लिया । महाराज जी एक बड़े पत्थर पर
                                    बैठ गए और आपने अपना सिर उनके घुटनों पर रख दिया । महाराज जी ने आपकी निर्मल आतम को
                                    मूल मिलावे में विराजमान राज श्यामा जी के चरणों में पहुंचा दिया । आप श्री राज जी के
                                    साथ चांदनी चौक में आए जहां दो सफेद घोड़े खड़े थे । उन पर बैठ कर दूर सागरों में ले गए
                                    । धाम के पच्चीस पक्षों की सैर कराई फिर उसी तरह वापिस सुरता को शरीर में प्रवेश करवाया
                                    । महाराज जी ने नवतनपुरी धाम की यात्रा का कार्य क्रम बना रखा था । वो आपको नवतनपुरी
                                    धाम लेकर गए । महाराज जी ने हुकम दे दिया कि कल से बीतक चर्चा जगदीश भाई करेंगे ।
                                    महाराज जी ने अपना दुपट्टा उतारा और उन्हें औढ़ा दिया । दुपट्टे में न जाने कौन सा जादू
                                    था कि उसे ओढ़कर अगले दिन से चर्चा शुरू कर दी । 
                                 सन् 1963 में महाराज जी आपको गीता , भागवत शास्त्रों के प्रमाणों और साक्षियों का ज्ञान
                                    देकर धीरे धीरे प्रवीण बनाते रहे । महाराज जी ने बड़े ही प्यार से समझाया कि एक दिन यह
                                    नश्वर शरीर छोड़ना ही है । धाम धनी हमें कभी छोड़कर परमधाम नहीं जा सकते । सन् 1964 में
                                    शेरपुर में भण्डारे पर 108 अखण्ड पारायण और लगभग 1500 सुन्दर साथ जी का भण्डारा सम्पन्न
                                    हुआ । महाराज जी ने मुलकराज अरोड़ा को अपना भविष्य तथा निजानन्द प्रचार प्रसार का कार्य
                                    क्रम बता दिया और कहा कि यह तन छूटने के बाद जगदीश भाई से शेष जागनी कार्य होगा ।
                                    महाराज जी ने आपसे कहा कि भाई मुझसे सारा हिसाब ले लो मुझसे अब संभाला नहीं जाता ।
                                    श्रीमती आशा भगत जी को देर होने से आपको मौसमी का रस लेने भेजा । आशा जी के पास से एक
                                    चम्मच रस मुंह में डाला और महाराज जी सांसारिक शरीर को 12 -10
                                        -1964 प्रातः 7- 30 बजे
                                        छोड़कर ब्रह्मलीन हो गए । पन्ना जी में श्रीमती कृष्णा , पुजारी जुगलदास जी
                                    , बनारसो
                                    बहन और आप पहुंच गए । आप रात्रि के समय 3 से 3-30 तक मेहर सागर
                                        की  परिक्रमा गुम्मट जी व
                                    बंगला जी की लगा रहे थे । श्री गुम्मट जी के पिछले दरवाजे पर पहुंच कर खड़े होकर देखा
                                    कि सुन्दर रेशम के झूले में अति सुन्दर वस्त्रों में महाराज जी विराजमान हैं तथा हाथ
                                    में एक रूमाल में लिपटे हुए स्वरूप साहब आपको देने के लिए हाथ बढ़ाते हैं और आप अपनी
                                    झोली आगे बढ़ाते हैं तो वह स्वरूप अदृश्य हो गया ।आपके लिये तो यह अनुभव साक्षात् धनी
                                    मिलन का हो गया । बाद में  सन् 1964 में महाराज जी की 
                                    पक्की समाधि का निर्माण आपने स्वयं
                                    ही अपने भावों से नक्शा बनाया व सुन्दर स्थान बनवा दिया ।  सन्
                                        1967 में गुरू स्थान में
                                    रसोई दी फिर पन्ना जी में 108 अखण्ड पारायण करवा कर भन्डारा दिया ।  सन् 1968 में 
                                    पुरियों की यात्रा , 206 सुन्दर साथ को लेकर जयपुर , गुजरात टिम्बा , खम्भात , बड़ौदा ,
                                    सूरत , मंगलपुरी , नरदाना , सोनगिरी आदि के दर्शन किए । 
                                  सन् 1970 में पन्ना जी में गुम्मट जी साहिब पर स्वर्ण
                                    कलश के महान उत्सव में आप 4 बसें
                                    भर कर पन्ना जी पहुंचे । कुल सेवा का भार मेहरचन्द जी व आपने उठा लिया । कलश अनावरण का
                                    शुभ कार्य धाम धनी ने आपसे करवाया ।  सन् 1971 में आपको
                                    शेरपुर छोड़कर इंचोली जाना पड़ा
                                    । जब आपने अश्रुभीने समाधि को नमन किया तो समाधि में से एक आवाज आई , भाई ये सब हमारी
                                    इच्छा से हुआ है , आप इंचोली जाकर सेवा करो हम तुम्हारे साथ हैं । सन् 1973 में महाराज
                                    जी का पावन स्मृति भण्डारा इंचोली में किया । जो आज दिन तक चलता आ रहा है ।  सन् 1973
                                        में आपके ऊपर एक शारीरिक संकट में आपकी अपैन्डिक्स की पाइप फट गई , लेकिन
                                    सतगुरू की
                                    कृपा से आप ठीक हो गए । उसके बाद अचानक आपका छोटा पुत्र शरीर छोड़कर चला गया । आपने
                                    असहनीय कष्ट को झेला और सहनशीलता का परिचय दिया । जबसे आपको पन्ना जी में अनुभव में
                                    वाणी मिली , उस कुलजम वाणी से आप अमृतसर , मुजफ्फरनगर , दिल्ली सुन्दर साथ को जाग्रत कर
                                    चुके थे । 
                                 यार यार की लड़ाई है अर्थात श्री राज जी जानते हैं कि क्या करना
                                        है ? इंचोली में सरकार
                                    श्री वाणी के अलावा मंच पर कुछ और नहीं बोलने देते थे । भण्डारा समाप्त होने पर स्वयं
                                    बाहर तक सुन्दर साथ को बसों में बैठाकर प्रणाम कर विदा करते तथा स्वागत करने में भी
                                    स्वयं टीका ,फूल अर्पण किया करते थे । तन, जीव व आत्मा को जुदा -जुदा समझाकर कर्म काण्ड
                                    के बन्धनों से मुक्त कराया । सरकार श्री ने पुराने से पुराने हस्तलिखित स्वरूप साहेब
                                    पटना राजपुर गांव से प्राप्त किये । यह सामग्री लेकर कु० बबली दिल्ली , चंचल रानी
                                    अमृतसर व अपनी धर्म पत्नी कृष्णा ,  पुजारी पन्नालाल जी व
                                        मांगीलाल जी को लेकर इलाहाबाद
                                        लगभग 8 महीने रहकर इस महत्वपूर्ण कार्य को स्वयं अपनी देख रेख में प्रेस में छपवाकर
                                        एक
                                        सुन्दर स्वरूप साहेब सुन्दर साथ के कर कमलों में अर्पित किया ।
                                  सन् 1978 में धर्म गुरू पं० प्यारेलाल जी इंचोली आश्रम
                                    पधारे । वे 15 दिन इंचोली में
                                    रहे , उन्होंने स्वयं देखा कि सरकार जी वाणी के अनुसार गरीबी भाव से जागनी और सेवा कर
                                    रहे हैं । उन्होंने कहा कि मेरा आशीर्वाद इनके साथ है । मुजफ्फरनगर व अमृतसर में मन्दिर
                                    बनवाया । बीतक साहेब से चर्चा व श्री प्राणनाथ जी की पहचान करवाकर सुन्दर साथ को मूल
                                    बातें समझाईं । सन् 1980 से पूर्व आप लग भग 80 बार बीतक साहेब चर्चा कर चुके थे ।
                                    धामियों द्वारा बंगला जी में पूरे समाज के समक्ष सरकार श्री को उनके कार्यों के आधार पर
                                    धर्मवीर जैसे विशेषण से सुशोभित किया । धर्म रक्षक के रूप में धनी जी ने आपको शोभा दी ।
                                    फुलपुर भैया में परमहंसों की गादी थी । सन् 1983 तक 
                                        केवल ब्रह्मचारियों को ही गादी पर
                                        आसीन किया जाता था । यह गादी स्थान खाली होने से उन गद्दी पर एक वाणी विशारद
                                        असिस्टेंट मैजिस्ट्रेट को गद्दी संभालने के लिए राजी कर लिया लेकिन पन्नाजी के धामी
                                        भाइयों ने इसके लिए मंजूरी नहीं दी । इस घटना से असिस्टेंट मैजिस्ट्रेट का अहम् आहत
                                        हुआ और उसने केस दर्ज करवा के आरोप लगवाया कि यह धर्म मुसलमानों का है । 
                                    बाद में श्री वाणी और बीतक साहेब को जप्त कर लिया गया । धर्म के सब प्रमुख पदों वालों
                                    की मीटिंग बड़ौदा में हुई । सबकी नजर एक ही व्यक्ति जगदीश चंद्र पर गई । आपसे फोन पर
                                    बात की गई तो आपने कहा कि धाम धनी के लिए तो मेरा रोम रोम भी न्यौछावर है । आप जबलपुर
                                    पहुंच कर राजेन्द्र वकील से मिले । उन्होंने इनसे धर्म के ठोस सिद्धांत मांगें जो
                                    इन्होंने दिए । आप अपने धाम धनी के स्वरूप श्री कुलजम वाणी को बन्धन से छुड़ा लाए ।
                                    बड़ी ही उमंग के साथ वाणी को सिर पर रखकर पन्ना जी आए । आप सरकार श्री सबकी बधाई के
                                    पात्र बने ।  सन् 1985 में अपने सतगुरू महाराज जी के नाम
                                    को रोशन करने इंचोली आश्रम में
                                     1200 परायण 6 महीने  का अनवरत कार्य रखा । 40 स्वरूप
                                    साहेब पधराए गए । अनेक सुन्दर साथ 6
                                    महीने तक इंचोली में रहे । संगीत की कक्षा में प्रोफेसर प्रकाश जी व मास्टर हंसराज जी
                                    गुड़गांव वालों ने बच्चों को ट्रेनिंग देकर परिपक्व किया । सब सुन्दर साथ की आवाज में
                                    कैसिटें बनीं । सब सुन्दर साथ प्रेम से आपको सरकार साहब कहकर पुकारने लगे ।
                                
                                 सन् 1986 में श्री प्राणनाथ जूनियर हाईस्कूल  तथा एक
                                    नर्सरी स्कूल भी शुरू हो गया । 1986
                                    में पहला जागनी शिविर टिम्बा गाँव में लगा । दि॰ 04/01/1987 से 25/01/1987 तक संधाना
                                    गाँव में दूसरे जागनी शिविर का आयोजन। यहाँ पर आपने सीधे मुसलमानों से वार्तालाप कर के
                                    क़ुरान के गुझ रहस्यों को खोला ।अलफ-लाम -मीम का अर्थ समझाया ।सन् 1987 में फतेहपुर
                                    मोटा (साबरकांठा ) में तीसरे शिविर का आयोजन ।श्री प्राणनाथ जी के नाम की दुंदुभी बज
                                    उठी थी । नवंबर 1987 में चौथे शिविर का आयोजन ओड़ गाँव में लगा । सरकार श्री की पूरी
                                    चर्चा की वीडियो कैसेट पहली बार बनी । पांचवा शिविर फरवरी 1988 में लखनऊ में लगा । आपके
                                    नाम को श्री रामरतन महाराज जी के नाम से जोड़कर वाणी प्रचार कर जागनी करने वाले को
                                    “जागनी रत्न “ की उपाधि से सुशोभित किया । छठा शिविर पुराल साबरकांठा में 1988 में
                                    लगाया गया । 1988 में ही बम्बई में बीतक चर्चा से अनेक सुन्दर साथ की आत्मिक जागृति हुई
                                    । 1200 साप्ताहिक परायण का महायज्ञ श्री गुम्मट जी में हुआ । सन् 1990 में इंचोली गांव
                                    का नाम बदलकर रतनपुरी रखवाकर अपने सतगुरू महाराज की महिमा को आपने चिरस्मरणीय तथा अखण्ड
                                    करवा दिया । 1990 में ही बड़ौदा आश्रम की नींव सरकार के कर कमलों द्वारा 40 परायण के
                                    साथ रखी गई । सन् 1993 में वाणी टीकाकरण प्रातः 5 : 30 बजे मंगल आरती के बाद शुरू हुआ
                                    जो 29 अक्टूबर 1993 को सम्पूर्ण हुआ । जागनी कार्य हेतु न्यूयार्क , वाशिंगटन , अटलांटा
                                    व बॉलिंग ग्रीन भी गए । 
                                कानपुर में वार्षिक उत्सव पर आपने मंच पर कहा कि हम निजानंद सम्प्रदाय के अनुयायी हैं ।
                                    मूर्ति पूजा का इसमें कोई स्थान नहीं है । इसमें जाति -पांति एवं ऊंच-नीच का कोई भेद
                                    भाव नहीं है । आत्मा न हिन्दू है ना मुसलमान । 1 अक्टूबर 1997
                                        से 10 अक्टूबर 1997 तक 
                                    निजानंद आश्रम रतनपुरी में रजत महोत्सव मनाया गया । अनेकों साहित्य जैसे माहेश्वर
                                    तन्त्र , सत्यदर्शन , सत्यांजलि , सच्चिदानंद स्वरूप , निजानंद सम्प्रदाय आदि अनेकों
                                    ग्रन्थ , व साहित्य श्री प्राणनाथ जी की पहचान कराने के लिए श्री राजन स्वामी जी के
                                    सहयोग से निकल चुके हैं ।  12 दिसम्बर 1997 को सरकार
                                    श्री को अस्पताल में भर्ती कर
                                    आपरेशन किया गया व डायलिसिस की प्रक्रिया शुरू हुई । सन् 1998 में दिल्ली प्राणनाथ जी
                                    मन्दिर का पधरावनी महोत्सव हुआ । प्रातः काल पूज्य श्री सरकार जी के कर कमलों द्वारा
                                     12
                                        फिट ऊंचा कलश का अनावरण हुआ ।सन् 1999 में बड़ौदा आश्रम में एक प्रशिक्षण
                                    शिविर लगा
                                    ।सन् 1999 में जयपुर के ट्रेनिंग स्कूल में कार्यक्रम हुआ । मार्च में रतनपुरी आश्रम
                                    में होली स्नेह मिलन कार्यक्रम हुआ । अप्रैल में अमृतसर व जालंधर में जागनी शिविर खुला
                                    मंच । सन् 1999 में तो कार्यक्रमों की झड़ी ही लग गई ।
                                आपके स्वास्थ्य को देखते हुए बड़ौदा आश्रम के एक कमरे को स्टुडियो का रूप देकर उसमें
                                    पूरी व्यवस्था स्टूडियो रिकार्डिंग की करवा दी । जून में बम्बोडा जिला उदयपुर में जागनी
                                    अभियान राजस्थान में लगा ।  4 फरवरी 2000 में ही विश्व
                                    स्तर पर जन जागरण कार्यक्रम  Z TV
                                        के प्रातः कालीन कार्यक्रम में शुरू हो गया । इन्टरनेट पर निजानंद सम्प्रदाय
                                    की श्री
                                    मुख वाणी का अंग्रेजी में अनुवाद करके प्रसारित किया गया । 5 फरवरी 2000 को धर्मवीर
                                    जागनी रत्न सरकार श्री के 75 वर्ष  को मनाने का
                                    कार्यक्रम रखा गया । उसका नाम अमृत
                                    महोत्सव 2000 से प्रसिद्ध हुआ ।  15 नवम्बर 2000 को प्रातः 4
                                        बजे वो सांसारिक तन को
                                    छोड़कर ब्रह्मलीन हुए । 
                                 केवल एक धाम धनी ही जाग्रत अवस्था में हैं और वो स्वयं
                                    ही अलग-अलग समय में अलग-अलग तन
                                    धारण करके कष्ट सहकर हम रूहों की जागृति करते हैं ।